ए.सी. मोटर (A. C. Motor)
यह मोटर विद्युत के A. C. स्रोत से चलता है। प्रेरण (Induction) सिद्धांत पर आधारित होने के कारण इसे प्रेरण मोटर (Induction Motor) भी कहते हैं।इन मोटरों में केवल स्टेटर को स्रोत से संयोजित करते हैं।
यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है :
1. प्रेरण मोटर (Induction Motor)
2. तुल्यकालिक मोटर (Synchronous motor)
इण्डक्शन मोटर को भी दो भागों में बाँटा गया है:
(i) 3- फेज इण्डक्शन मोटर
(ii) 1-फेज इण्डक्शन मोटर
3- फेज प्रेरण मोटर (3- Phage induction motor) :
यह 3 - फेज ए. सी. स्त्रोत पर कार्य करता है।
यह प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
इसके मुख्यतः दो भाग होते हैं।
1. स्टेटर 2. रोटर
1. स्टेटर (Stator)
यह मोटर का नहीं घूमने वाला भाग है।
स्टेटर में ही अंदर की तरफ से स्टेटर कोर लगाये रहते है जो सिलिकॉन इस्पात (Silicon Steel) का बना होता है।
स्टेटर कोर को लेमिनेटेड (0.35mm to 0.5 mm) करने से एडी धारा क्षति कम होती है तथा सिलिकॉन इस्पात का हिस्टेरेसिस गुणांक कम होने के कारण हिस्टेरेसिस क्षति कम होती है।
स्टेटर कोर पर ही 3- Phase स्टार या डेल्टा winding की जाती है।
जिसके दूसरे सिरे से मोटर को 3- Phase A. C. सप्लाई दी जाती है। स्टेटर को ए.सी. सप्लाई देने से वह घुमने वाला चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है।
घूमने वाले चुम्बकीय क्षेत्र की घूर्णन गति तुल्यकालिक गति (Synchronous speed) कहलाता है जिसे N से निरूपित करते है।
Ns =120 x f /P
जहाँ, Ns = स्टेटर की तुल्यकालिक गति (R.P.M. में) f = सप्लाई फ्रिक्वेंसी (Hz में)
P = स्टेटर पोल्स की संख्या
सूत्र से स्पष्ट है कि ध्रुवों की संख्या बढ़ाने से मोटर की गति उपरोक्त कम की जा सकती है। इसके विपरीत कम करने से गति बढ़ जाती है।
2. रोटर (Rotor)
यह मोटर का घूमने वाला भाग है। यह हल्की स्टील का बना होता है।
प्रेरण मोटर के रोटर कुण्डलन का किसी सप्लाई स्रोत से सीधा कोई संबंध नहीं रहता है।
रोटर परिपथ में आवश्यक वोल्टता तथा धारा, स्टेटर कुण्डलनों द्वारा विद्युत चुम्बकीय प्रेरण द्वारा उत्पन्न की जाती है।
यह तीन प्रकार के होते हैं
(a) पिंजरा वेष्ठित रोटर (Squirrel-Cage Wound rotor)
(b) दुहरा पिंजरा वेष्ठित रोटर (Double Squirrel-Cage Wound rotor)
(c) फेज वेष्ठित रोटर (Phase Wound rotor)
(a) पिंजरा वेष्ठित रोटर (Squirrel-Cage Wound rotor).
पिंजरा वेष्ठित रोटर के कोर में बने स्लॉट में ताँबा, एल्युमीनियम या मिश्रधातु की छड़े स्थापित की जाती है।
यह छड़े रोटर के दोनों तरफ ताँबे या एल्युमीनियम के छल्लों (rings) द्वारा आपस में लघु पथित (short circuit) कर देते हैं।
ये छड़े रोटर की कुण्डलन का कार्य करती है।
प्रेरण मोटर में प्राय: खाँचों को तिरछा रखा जाता है। ऐसा करने से स्टेटर तथा रोटर के मध्य चुम्बकीय पकड़ तथा चुम्बकीय भनभनाहट कम होता है।
(b) दुहरा पिंजरा वेष्टित रोटर (Double Squirrel Cage Wound
इसमें दो पिंजरा होता है इसलिए इसे दुहरा पिंजरा रोटर कहते हैं।
इस प्रकार के मोटर का प्रारम्भिक बलाघूर्ण (starting torque) पहले वाले रोटर से अच्छा होता है।
(c) फेज वेष्ठित रोटर (Phase Wound rotor)
इस प्रकार के प्रयोग हुए रोटर वाले मोटर को स्लिप रिंग इण्डक्शन मोटर कहते हैं।
इस रोटर के कोर में बने समांतर स्लॉट में 3-फेज वाइंडिंग की जाती है जिसका एक सिरा स्टार या डेल्टा कनेक्शन में जुड़ा रहता है और दूसरा सिरा रोटर के चाल नियंत्रण के लिए स्लिप रिंग्स से जुड़ा रहता है।
रोटर शाफ्ट पर ही रोटर वाइडिंग्स के बगल में स्लिप रिंग्स बने होते हैं जो ताँबे के होते हैं।
बड़े मोटर में फास्फार ब्रोन्ज का होता है।
रोटर में ध्रुवों की संख्या स्टेटर के ध्रुवों के संख्या के समान होती है।
रोटर स्लिप (Rotor Slip)
रोटर की घूर्णीय गति सदैव स्टेटर के चुम्बकीय क्षेत्र की घूर्णीय दिशा में होती हैं परन्तु इसका मान तुल्यकालिक गति से सदैव कम होता है।
इस प्रकार तुल्यकालिक गति तथा रोटर गति का अंतर एब्सोल्यूट स्लिप या स्लिप कहलाता है।
अगर स्लिप का मान शून्य हो जाए तो मोटर रूक जायेगी।
जब स्लिप को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है तो उसका प्रतिशत स्लिप कहते हैं।
3- फेज इण्डक्शन मोटर का रोटर उसी दिशा में घूमता है जिस दिशा में घूमने वाला क्षेत्र घूमता है (लेंज के नियम के अनुसार) यदि सप्लाई के किसी भी दो फेजों को आपस में बदल दिया जाए तो घूमने वाले क्षेत्र की घूर्णन दिशा बदलने के कारण रोटर के घूर्णन दिशा भी बदल जाती है।
यदि 3-0 स्लिपरिंग इंडक्शन मोटर के रोटर टर्मिनल शॉर्ट सर्किट न हो और सप्लाई स्टेटर को दी जाए तो मोटर स्टार्ट नहीं होगी। यदि 3-0 इंडक्शन मोटर के तीन फेजों में से एक फेज चलते समय डिस्कनेक्ट कर दिया जाए तो मोटर उसी गति पर चलती रहेगी लेकिन ऐसा करने से उसकी windings जल सकती है इसे सिंगल फेजिंग कहते हैं।
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