वि. वा. बल समीकरण (E.M.F. Equation)
इससे जनित्र में उत्पन्न वि.वा. बल की गणना करते हैं
E = ΦZ.N P /60 A
जहाँ E = जनित्र द्वारा पैदा वि. वा. बल (volts में)
Φ = प्रति पोल चुम्बकीय फ्लक्स (webers में)Z
Z= आर्मेचर चालको की संख्या
N = आर्मेचर की घूर्णन गति (R.PM. में)
P = पोल्स की संख्या
A = आर्मेचर वाइंडिंग में समांतर पथों की संख्या
D. C. जनित्र के घूर्णन की दिशा परिवर्तित करने से करंट प्रवाह की दिशा परिवर्तित हो जायेगी।
D.C. जनित्रों का वर्गीकरण (Classification of D. C. Generators)
उत्तेजना प्रणाली के आधार पर D.C. जनित्रों का वर्गीकरण दो भागों में किया गया है।
A. पृथक- उत्तेजित जनित्र (Seperately excited generator)
B. स्व-उत्तेजित जनित्र (Self excited generator)
A पृथक उत्तेजित जनित्र
1. इस प्रकार के जनित्र में प्रयोग किये जाने वाले फील्ड Poles (विद्युत चुम्बक) को उत्तेजित करने के लिए बाहरी d.c. स्त्रोत की आवश्यकता होती है।
2. इसमें उत्तेजक वोल्टेज का मान उत्पादित वोल्टेज के मान से कम होता है।
3. पृथक उत्तेजित जनित्र बिना अवशिष्ट चुम्बकत्व के वि. वा. बल पैदा कर सकती है।
4. जहाँ कम वोल्टता तथा उच्च धारा की आवश्यकता हो तथा क्षेत्र धारा को नियंत्रित करना पड़ता हो वहाँ इस प्रकार का जनित्र प्रयोग होता है।
5. विद्युत लेपन, धातु शुद्धिकरण इत्यादि में प्रयोग होता है।
B. स्व-उत्तेजित जनित्र
इस प्रकार के जनित्र में फील्ड पोल्स को उत्तेजित करने के लिए बाह्य वैद्युतिक स्रोत की आवश्यकता नहीं होती।
यह भी दो प्रकार के होते हैं:
(a) स्थायी-चुम्बकीय जनित्र (Permanent Magnetic Generator)
इसमें चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए विद्युत चुम्बक का प्रयोग किया जाता है
(b) विद्युत-चुम्बकीय जनित्र (Electro-magnetic generator)
. इसमें चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए विद्युत चुम्बक का प्रयोग किया जाता है।
. क्षेत्र वाइंडिंग्स के संयोजन विधि के आधार पर ये जनित्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
(i) श्रेणी कुण्डलित जनित्र
(ii) शंट कुण्डलित जनित्र
(iii) कम्पाउण्ड कुण्डलित
(1) श्रेणी कुण्डलित जनित्र (Series Wound Generator)
1. इस जनित्र में आर्मेचर फील्ड वाइडिंग तथा लोड तीनों श्रेणी क्रम में होते हैं।
2. इस जनित्र को बिना load के नहीं चलाना चाहिए क्योंकि ऐसी अवस्था में खुला परिपथ हो जाने के कारण प्राप्त वि. वा. बल या धारा का मान शून्य हो जायेगा। 3. इस जनित्र की फील्ड बाइंडिंग मोटे तार तथा कम लपेट वाली बनाई जाती है।
4. इस जनित्र का प्रतिरोध निम्न स्तरीय होता है।
5. इस जनित्र में लोड परिवर्तन से टर्मिनल वोल्टेज परिवर्तित होता है।
6. सीरीज जनित्र होने के कारण हर जगह विद्युत धारा का मान समान होता है।
(2) शन्ट जनित्र (Shunt Generate)
1. इसमें फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर के समानांतर में संयोजित होती है।
2. इस जनित्र को load से संयोजित करके चालू नहीं करना चाहिए क्योंकि इस अवस्था में प्रेरित विद्युत धारा का प्रवाह मुख्य रूप से load की ओर होने लगेगा और field winding को नहीं मिल पाता है फलस्वरूप field winding पूरा चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित नहीं कर पाता है और प्राप्त वि.वा. बल कम हो जाता है 3. इस जनित्र की फील्ड वाइडिंग पतले तार की बनाई जाती है।
4. इसका उपयोग Centrifugal Pump, electroptating welding. एक्साइटर, लिफ्टिंग लोड, स्थिर वोल्टेज बैट्री चार्जिंग आदि के लिए किया जाता है।
5. यदि D.C. शंट जनित्र का अवशिष्ट चुम्बकत्य समाप्त हो जाए तो उसे पुनः प्राप्त करने के लिए शंट फील्ड को कुछ मिनट के लिए बैट्री से संयोजित कर देना चाहिए।
(3) कम्पाउन्ड जनित्र (Compound Generator)
1. जब D.C. जनित्र के फील्ड वाइंडिंग को दो भागों में विभक्त कर एक भाग को आर्मेचर के श्रेणीक्रम में और दूसरे को उसके समानांतर क्रम
में जोड़ा जाता है तो वह कम्पाउन्ड जनित्र कहलाता है।
2. इसका output वि. वा बल full load या No-load दोनों स्थिति में स्थिर रहता है।
3. इसके आर्मेचर की सीरीज फील्ड वाइडिंग मोटे तार और कम लपेट की तथा शंट फील्ड वाइंडिंग पतले तार और अधिक लपेट की होती है।
कम्पाउन्ड जनित्र की किस्में
(i) डिफरेन्शियल कम्पाउन्ड जनित्र (Differential Compound Generator)
1. इस प्रकार के जनित्र में शंट फील्ड तथा सोरीज द्वारा उत्पन्न फ्लक्स एक दूसरे के विपरीत कार्यरत होते हैं।
2. इनका उपयोग आर्क वेल्डिंग में तथा चाप वेल्डिंग में भी होता है।
3. इसमें लोड करंट बढ़ने पर टर्मिनल वोल्टेज तीव्रता से घटता है।
(ii) क्यूम्यूलेटिव कम्पाउण्ड जनित्र ( Cumulative Compound Generator)
1. इस प्रकार के जनित्र में शंट फील्ड तथा सीरोज फील्ड द्वारा उत्पन्न फ्लक्स एक-दूसरे के सहायक होते हैं।
2. इनका उपयोग स्ट्रीट लाइट, रेलवे, लेथ मशीन, इलेक्ट्रोप्लेटिंग इत्यादि में किया जाता है। दूर के भार की आपूर्ति में भी इसका प्रयोग होता है।
डी.सी. जनित्रों में क्षतियाँ (Losses in D.C. Generator)
ये मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं:
1. ताम्र क्षति
2. लौह क्षति
3. यांत्रिक क्षति
1. ताम्र क्षति (Copper loss )
यह वैद्युत शक्ति की वह क्षति है जो आर्मेचर तथा फील्ड वाइडिंग के प्रतिरोध एवं ब्रशेज के संपर्क प्रतिरोध के कारण पैदा होती है।
2. लौह क्षति (Iron loss )
आर्मेचर तथा फील्ड की क्रोडो में होने वाली वैद्युतिक शक्ति की क्षति, लौह क्षति कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है
(a) हिस्टेरेसिस क्षति (Hysteresis loss )
लौह आदि चुम्बकीय पदार्थ के बार-चार चुम्बकित तथा विचुम्बकित होने में हुई वैद्युत शक्ति की क्षति हिस्टेरेसिस क्षति कहलाती है।
(b) एडी करंट क्षति (Eddy Current loss )
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत के अनुसार, चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान प्रत्येक चालक में वि. वा. बल पैदा हो जाता है और इसके अनुरूप आर्मेचर कोर में भी वि. वा. बल पैदा हो जाता है। इस वि. वा. बल के कारण कोर में प्रवाहित विद्युत धारा अनावश्यक रूप से वैद्युतिक शक्ति की खपत करती हैं जिसे एडी करंट क्षति कहते हैं।
आर्मेचर कोर को laminated बनाने से एडी धारा क्षति का मान होता है।
3. यांत्रिक क्षति (Mechanical loss )
1. आर्मेचर के वायु के घर्षण से, वियरिंग्स के घर्षण से तथा ब्रशों के कम्यूटेटर के घर्षण से होने वाली क्षति यांत्रिक क्षति कहलाती है।
2. D.C Generator की सारी क्षतियों को सुविधापूर्वक निम्न प्रकार से दर्शाया जाता है।
स्ट्रे क्षति (Stray loss) = लौह क्षति + यांत्रिक क्षति
नियत क्षति (Constant loss ) = लौह क्षति + यांत्रिक क्षति + शंट फील्ड क्षति
अस्थिर क्षति (Variable loss) = आर्मेचर क्षति + सीरीज फील्ड क्षति
अतः कुलक्षति (Total loss) = नियत क्षति + अस्थिर क्षति
0 टिप्पणियाँ